हम यहाँ क्यों हैं? सदियों से इंसान खुद से यही सवाल पूछता रहा है। आधुनिक विज्ञान मोटे तौर पर यही तर्क देता है कि इंसान एक उद्देश्यहीन ब्रह्मांड की संयोगवश उपज है, लेकिन दूसरी परंपराएँ मानती हैं कि सृष्टि में मानवता की एक अहम भूमिका और ज़िम्मेदारी है।
लैचमैन गूढ़, आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों के अनेक पहलुओं को एक साथ लाते हुए इक्कीसवीं सदी में व्याप्त शून्यवाद का प्रतिवाद प्रस्तुत करते हैं। उत्तर-आधुनिक उदासीनता का एक क्रांतिकारी विकल्प प्रस्तुत करते हुए, वे तर्क देते हैं कि हम मनुष्य ब्रह्मांड के रखवाले हैं, और हमें एक कठिन कार्य सौंपा गया है: स्वयं सृष्टि को स्वस्थ और दुरुस्त बनाना।
यह हमारे समय के एक प्रमुख विचारक की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो मानवता के समक्ष उपस्थित कुछ सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश डालती है।